लेखक : रवि प्रताप आर्य ( पत्रकार )

बलिया। रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई’, ये मुहावरा रसड़ा के बारजा अतिक्रमणकारी व दुकान में बतौर किराएदार कब्जाधारियों पर सटीक बैठती है। हालांकि उक्त दोनों विषय बारज़ा व जर्जर दुकान माननीय न्यायालय के आदेश के बाद जमींदोज़ हो चुके हैं। बाज़ारों में गर्म चर्चा है कि रसड़ा नगर पालिका की राजनीति में खुद को 25 साल से सुपरस्टार कहने वाले तथाकथित विकास पुरूष ने वर्षों से सार्वजानिक रास्ते पर अवैध रूप से मकान का बारज़ा निकालकर / बनाकर सार्वजनिक संपत्ति पर सर्प की भांति कुंडली मारकर बैठे हुए थे । जिसे माननीय न्यायालय के आदेश के बाद लोक – टिप्पणी की भय से स्वयं ही तोड़वा दिए।

बावजूद रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई। बाज़ारों में लोगों का यह भी कहना है कि बारज़ा वाले विकास पुरूष रसड़ा के बहुचर्चित किरायेदार – दुकानदारों को दिगभ्रमित कर उन्हें अनावश्यक मुकदमें के उलझन में उलझाए रखें। मालूम हो कि रसड़ा के मुख्य बाज़ार में दो मंजिला भवन स्थित था। जिसमें लगभग एक दर्जन दुकान था। मकान / दुकान मालिक ने दुकानों को किराये पर दे रखा था। सालों पूर्व बना मकान /दुकान अब पूरी तरह से जर्ज़र हो चुका था।

बीते वर्ष बरसात के दिनों में जर्ज़र भवन का कुछ हिस्सा अति जर्ज़र होने पर स्वत: ही गिर गया। पूर्व से माननीय न्यायालय में वाद विचाराधीन होने की वजह से मकान मालिक जर्ज़र भवन पर कोई नया काम नहीं करा सकते थे, इसलिए वो पहले नगर पालिका तो फिर बाद में न्यायालय की शरण में गए।

एक लम्बे समय के बाद कानूनी संघर्ष के बीच कोर्ट का आदेश आया कि जर्ज़र भवन को ध्वस्त कराया जाए। सूत्रों की मानें तो छल -कपट से भरा मैल – मन ने मन ही मन कुछ और ही मन बना लिया था लेकिन कोर्ट का ध्वस्तिकरण का आदेश आते ही छल -कपटी रूपी पुष्प सुख गए. मिट्टी में मिल गए। कोर्ट के आदेश के बाद अंतत : रसड़ा नगर पालिका प्रशासन ने बुलडोजर लगाकर जर्ज़र भवन को गिरा दिया।
रसड़ा बाज़ार में खास चर्चा है कि जर्ज़र भवन के साथ किरायदारों का हठ व बारज़ा वाले विकास पुरूष का गुरूर जमींदोज़ हो गया।

कहने को लोगों का यह भी कहना है कि उलझनों के सरदार ने ही उक्त किरायदारों को दिशा भ्रमित करके उलझाया था जिसका परिणाम ये रहा कि सभी के सभी हाथ खाली हो गए. लोगों का कहना है कि जो अपना बारज़ा नहीं बचा सका वो किसी और का क्या बचा पाएगा? अर्थात् जो गलत है, विधि -विरुद्ध है उसे एक न एक दिन मिट्टी में मिलना है उसका पतन तय है। सामाजिक व बुद्धिजीवियों का कहना है कि ऐसे किरायदारों के कर्म -आचरण की वजह से भविष्य में कोई किसी को किराये पर मकान -दुकान देने से कतराएगा- परहेज़ करेगा। खैर जर्ज़र भवन पर किरायेदारों -मकान मालिक का एक वाद माननीय न्यायालय में विचाराधीन है, जिसका निर्णय आना अभी बाकी है।
रसड़ा में चारों तरफ बस यही चर्चा है कि सत्ता गई, शासन गया, गया बारज़ा -गुरूर। देखो फिर भी कूद रहा मानो जैसे हो बानर – लंगूर।।