रिपोर्ट : रवि प्रताप आर्य

ऐसे बहुत से लोग होते हैं जो इस दुनिया से रुख़्सत होने के बाद अपने पीछे अपना प्रभावी इतिहास छोड़ जाते हैं और उनकी यादें हमेशा दिलो-दिमाग में घर किए होती हैं। दिवंगत पत्रकार प्रदीप आर्य कुछ ऐसे ही थे। जिनकी पत्रकारिता आज भी प्रासंगिक है। पत्रकार प्रदीप आर्य का जन्म 01 जनवरी 1960 में एक साधारण वैश्य परिवार में उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के रसड़ा (उत्तर पट्टी) में हुआ था। पिता प्रहलाद प्रसाद एक मिठाई की दुकान चलाते थे तो माता सूर्यमुखी देवी धार्मिक प्रेमी महिला थीं। माता सूयर्मुखी को रामचरित मानस पढ़ने सुनने में काफी रुचि थी। शायद इसी वजह से बालक प्रदीप धार्मिक ग्रथों में रुचि रखने लगे। इनकी घर की स्थिति अच्छी नंहीं थी। इन्होने स्वाध्याय से ही हिन्दी संस्कृत तथा अंग्रेजी भाषाओं का गहन अध्ययन किया और इन्होंने पाठशाला में शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने गद्य में अपनी रचना की है। आर्य जी का गद्य इनके जीवन से ढलकर आया है। इनकी रचनाओं में कालगत आत्मपरकता, चित्रात्मकता और संस्मरणात्मकता की प्रमुखता दिखायी देती है।

पत्रकारिता के क्षेत्र में इन्हें अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। आर्य राजनीतिक और सामाजिक जीवन से संबंध रखने वाले अनेक निबंध लिखे हैं। ‘क्रांतिकारी बलिया ” साप्ताहिक समाचार पत्र का सम्पादन भी प्रदीप आर्य कर चुके हैं। आपने अपने लेखन के अतिरिक्त अपने नये लेखकों को प्रेरित और प्रोत्साहित किया है। आर्य जी का जीवन सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं न केवल पत्रकारिता के माध्यम से बल्कि अपने सक्रिय सामाजिक जीवन के माध्यम से उन्होंने हमेशा गरीब और दबे कुचले वर्ग के लिए आवाज उठाई। युवा पत्रकारों के लिए श्री आर्य का जीवन प्रेरणा स्रोत है। युवा पत्रकारों के लिए वह पत्रकारिता की यूनिवर्सिटी थे। हिंदी के श्रेष्ठ पत्रकारों में आर्य जी का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उनकी रचनाओं में कलागत आत्मपरकता और संस्मरणकता को ही प्रमुखता प्राप्त हुई है । पत्रकारिता को उन्होंने सेवार्थ सिद्धि का साधन नहीं बनाया बल्कि इसका उपयोग उच्च मानवीय मूल्यों की स्थापना में किया । साहित्य के क्षेत्र में आपकी सेवाएं संस्मरणीय हैं। पत्रकारिता में आपने क्रांतिपूर्ण कदम बढ़ाया। इन्होंने अनेक साहित्यकारों को उभारा है ।
नए नए साहित्यकारों के लिए आप स्नेहमय एवम भावपूर्ण लेख लिखते रहे तथा उनका मार्ग प्रशस्त करके आपने हिंदी साहित्य को नए आयामों से परिचय कराया । हिंदी साहित्य की निरंतर सेवा में मृत्यु प्रयंत संलग्न रहे। आप आदर्श साहित्यकार हैं ।

आर्य अखबार के माध्यम से हमेशा जनसरोकार के मुद्दे उठाते थे। यही नहीं, जिन दबंगों के खिलाफ उस समय पुलिस भी कारर्वाई करने से डरती थी, उन्हें भी बेखौफ होकर बेनकाब करते थे। आपकी लेखनी हमेशा भ्रष्ट अफसर और नेताओं के खिलाफ चलती थी। वहीं, समाज में सकारात्मक काम करने वालों को भी आपकी कलम से सम्मान मिला। आर्य पत्रकारिता से लम्बे अर्से तक जुडे रह कर सामाजिक लोगो को न्याय दिलाने में सहयोग किये। अपने जीवनकाल में उनके ऊपर एक भी आरोप नहीं थे। वह बेदाग साफ सुथरी छवि वाले निडर स्वभाव के पत्रकार थे। करीब तीन दशक तक पत्रकारिता के क्षेत्र मे उन्होने अपना योगदान दिया है जो कि अविस्मरणीय रहेगा। जुलाई 2017 में सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए और फिर बीमार चलने लगे। जीवन मृत्यु के खेल में 28 नवम्बर साल 2017 में इनकी मृत्यु हो गई। रसड़ा की पत्रकारिता की जब भी बात की जाएगी प्रदीप आर्य का नाम लिए बिना बात पूरी नहीं होगी।

इन समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में कर चुके हैं काम
पत्रकार प्रदीप आर्य अपने पत्रकारिता जीवन में तमाम छोटे बड़े अखबारों में काम किए। वे गांडीव, तंत्र इंडिया, समाचार ज्योति, प्रभात खबर, खबर विजन, शाश्वत चिंतन (पत्रिका), दैनिक जागरण, दूरदर्शी रीडर (वतर्मान में दूरदर्शी दर्पण पत्रिका), आज, भारत एकता टाइम्स व अन्य अखबारों में काम किए। साथ ही साथ वे ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन रसड़ा के संरक्षक भी रहे।
भाषा शैली
आर्य जी की भाषा सामान्यतया तत्सम शब्द प्रधान, शुद्ध और साहित्यिक खड़ीबोली है। इन्होंने उर्दू,अंग्रेजी आदि भाषाओं के साथ देशज शब्दों एवं मुहावरों का भी प्रयोग किया है। सरलता, मार्मिकता, चुटीलापन, व्यंग्य और भावों को व्यक्त करने की क्षमता इनकी भाषा की प्रमुख विशेषताएँ हैं। वणर्नात्मक, भावात्मक, नाटक-शैली के रूप इनके लेखों में देखने को मिलते हैं।
